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ए॒ष प॒वित्रे॑ अक्षर॒त्सोमो॑ दे॒वेभ्य॑: सु॒तः । विश्वा॒ धामा॑न्यावि॒शन् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eṣa pavitre akṣarat somo devebhyaḥ sutaḥ | viśvā dhāmāny āviśan ||

पद पाठ

ए॒षः । प॒वित्रे॑ । अ॒क्ष॒र॒त् । सोमः॑ । दे॒वेभ्यः॑ । सु॒तः । विश्वा॑ । धामा॑नि । आ॒ऽवि॒शन् ॥ ९.२८.२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:28» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एषः) यह परमात्मा (सोमः) सौम्य स्वभाववाला (देवेभ्यः सुतः) दैवी सम्पत्तिवालों के लिये प्रकाशमान है (विश्वा धामानि आविशन्) सम्पूर्ण स्थानों में व्याप्त है, एवंभूत परमात्मा (पवित्रे अक्षरत्) जिज्ञासुओं के पवित्र अन्तःकरण में विराजमान होता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - “यस्मिन्सर्वाणि भूतानि आत्मैवाभूद् विजानतः” यजुः। विज्ञानी पुरुष के लिये सब भूत उसका निवासस्थान हैं और इसी प्रकार “य आत्मनि तिष्ठन् आत्मनोऽन्तरो यमात्मा न वेद यस्यात्मा शरीरम्” बृ० अन्तर्यामि ब्रा०। इत्यादि वाक्यों में यह प्रतिपादन किया है कि जीवात्मा उसका शरीरस्थानी है अर्थात् जिस प्रकार जीवात्मा अपने शरीर का प्रेरक है, उसी प्रकार वह जीवात्मा का प्रेरक है, इसलिये मन्त्र में ‘धामान्याविशन्’ का कथन किया है अर्थात् शरीररूपी धाम में वह विराजमान है ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एषः) अयं परमात्मा (सोमः) सौम्यस्वभावः (देवेभ्यः सुतः) दैवसम्पत्तिमद्भ्यः प्रकाशमानः (विश्वा धामानि आविशन्) सर्वं स्थानं व्याप्नोति एवम्भूतः परमात्मा (पवित्रे अक्षरत्) जिज्ञासूनां पवित्रान्तःकरणे विराजते ॥२॥